
एशिया कप 2025 के हाई-वोल्टेज भारत-पाकिस्तान मुकाबले में भारत की धमाकेदार जीत के बाद, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने ऐसा बयान दे दिया जिसने सोशल मीडिया और न्यूज़ रूम्स दोनों में मिर्ची डाल दी।
“भारत जीता, हमें खुशी हुई… लेकिन अब मैच की बात क्यों?”
मैच के बाद जब एक पत्रकार ने उनसे पहलगाम आतंकी हमले और इस मैच के संदर्भ में सवाल किया, तो प्रियंका गांधी का जवाब आया:
“जब भारत जीतता है तो खुशी होती है, ख़ासकर पाकिस्तान के खिलाफ। लेकिन अब मैच हो चुका है, तो अब इस पर चर्चा क्यों करें?”
Translation:
“India won, we are happy… especially against Pakistan. But now the match is done, so what’s the point of talking about it?”
इस बयान ने देश को उलझन में डाल दिया। जीत की खुशी में सवालों का गला घोंट देना – क्या यही है नया राजनैतिक गेमप्लान?
पहले बहिष्कार, अब बहिष्कार की बात भी बेकार?
मैच से पहले बहिष्कार की मांग जोरों पर थी — कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने कहा था कि “जो देश आतंक फैलाता है, उसके साथ क्रिकेट कैसे?”
लेकिन जैसे ही मैच खेला गया और भारत जीता, तो सब कुछ ‘ठीक’ हो गया?
तो क्या यह माना जाए कि अगर जीत पक्की हो तो रिश्ते निभाना ठीक है, वरना ‘बहिष्कार’ ट्रेंड करवाना भी चलता है?
स्पोर्ट्स पॉलिटिक्स 101: जीत जाएं तो नीति बदल दो!
प्रियंका गांधी का बयान भारतीय राजनीति की “सिलेक्टिव मेमोरी लॉस” का बढ़िया उदाहरण है:

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पहले कहा: “पाकिस्तान से कोई संबंध नहीं होने चाहिए!”
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फिर हुआ मैच!
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फिर भारत जीता!
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फिर बोला: “अब इस पर बात क्यों करें?”
मुलाकात करने के बाद भूल जाना कि शत्रु कौन है – ये नई स्ट्रैटेजी है या डिप्लोमैटिक भूल-चूक माफ़ी दिजिए?”
क्रिकेट में जीतने के बाद सब कुछ ‘All Is Well’ हो जाता है – आतंकवाद, कूटनीति और बयानबाज़ी सब भुला दी जाती है। प्रियंका गांधी का बयान बस ये बताने के लिए काफी है कि हमारे नेताओं को मुद्दे याद रखने की नहीं, मौके के हिसाब से बदलने की आदत है।
“बहस तब तक ज़िंदा रहती है, जब तक कैमरा ऑन रहता है!”
चाहें आप क्रिकेट फैन हों या पॉलिटिकल थिंकर — ये मैच सिर्फ मैदान में नहीं, माइक्रोफोन पर भी खेला गया।
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